मास-महिमा. धर्मशास्त्र के अनुसार स्नान नित्यकर्म माना गया है। नित्य स्नान के अतिरिक्त धर्मशास्त्रीय दृष्टि से मेष, तुला एवं मकर के सूर्य में क्रमश: वैशाख, कार्तिक एवं माघ मास में स्नान का विशेष फल प्राप्त होता है। मकर राशि के सूर्य में पौष शुक्ल एकादशी, पूर्णिमा अथवा अमावस्या से माघ स्नान का प्रारंभ होता है। अधिकांशत: पौष की पूर्णिमा से ही माघ स्नान के प्रारंभ की परंपरा है।
पौष शुक्ल पूर्णिमा से लेकर माघ पूर्णिमा तक माघ स्नान करने का शास्त्रीय विधान है, लेकिन ज्यादातर चंद्रमास के अनुसार ही माघ स्नान का विधान किया गया है -एकादश्यां शुक्लपक्षे पौषमासे समारभेत्।
माघमास में सूर्योदय के समय जल अत्यंत पवित्र होता है और उसमें तीनों प्रकार के पापों के विनाश की शक्ति होती है-माघमासे रटन्त्याप: किंचिदभ्युदिते रवौ।ब्रrाघ्नं वा सुरापं वा कं पतन्तं पुनीमहे॥
इस समय तीर्थजल में स्नान से ब्रrाघाती, शराबी और पतित भी पवित्र हो जाते हैं। जो व्यक्ति माघ मास में प्रात: समय सूर्य की किरणों से संतप्त नदी के प्रवाह में स्नान करता है, वह माता-पिता के वंश की सात-सात पीढ़ियों का उद्धार करके स्वयं देवरूप होकर स्वर्ग जाता है।
स्नान का सवरेत्तम समय अरुणोदय (सूर्योदय से एक घंटा छत्तीस मिनट पूर्व) माना गया है। इस समय स्नान करने वाला देवताओं में पूजित होता है। तारों की छांव में स्नान उत्तम, तारे छिपने पर स्नान मध्यम व सूर्योदय होने पर स्नान अधम कहा गया है।
गर्मजल से स्नान पर छह वर्ष के स्नान का फल मिलता है। बावड़ी में स्नान से बारह वषर्, तालाब में स्नान से २४ वषर्, नदी में इसका चौगुना, महानदी में सौ गुना, महानदी संगम में इससे चौगुना, गंगा में हजार गुना और गंगा-यमुना के संगम में स्नान से लाख गुना स्नान का फल प्राप्त होता है।
माघ स्नान को पुण्यदायी माना गया है। पुराण में लिखा है कि पौषशुक्ल एकादशी से लेकर माघ शुक्ल एकादशी तक, मास भर भूमि पर शयन करें, निराहार रहें और तीनों समय स्नान करें। भोग- विलास त्यागकर तीनों समय भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। माघ मास में स्नान से यज्ञ का फल प्राप्त होता है। इस मास में प्रयाग स्नान अति श्रेष्ठ माना गया है। इस स्नान से कई जन्मों के पापों का नाश हो जाता है।
यदि प्रयाग में स्नान संभव न हो तो किसी भी तीर्थ में प्रयाग का स्मरण कर स्नान करने से गंगा स्नान का फल प्राप्त होता है। जो पूरे मास स्नान करने में असमर्थ हो वह शुरू के तीन दिन या आखिर के तीन दिन या कोई भी तीन दिन स्नान कर सकता है। यह स्नान विष्णु भगवान को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है।
जो मनुष्य माघ में निरंतर भक्ति भाव से स्नान करता है, उसे पौण्डरीक यज्ञ का फल प्राप्त होता है। उसके किए पाप स्नान के जल में चले जाते हैं। विष्णु का पूजन कर व्रती तिल से स्नान, उबटन, होम, तर्पण, दान एवं तिल का भोजन करें। पितरों व देवताओं को मूली नहीं चढ़ानी चाहिए और न ही मूली खानी चाहिए। स्नान करने वाले को आग तापना भी निषेध किया गया है।
अग्नि में होम करना चाहिए तथा प्रतिदिन तिल व शक्कर दान करना चाहिए। यह मास तपस्वियों को प्रिय है। इसमें स्नान से महापातकी भी पाप मुक्त हो जाते हैं। माघ स्नान के विषय में कहा गया है कि जो मनुष्य मरने के उपरांत कष्ट नहीं चाहता, उसे यह स्नान करना चाहिए। माघ मास के दौरान जल में देवताओं का तेज विद्यमान रहता है, इसलिए माघ स्नान को बहुफलप्रदायक कहा गया है। यह मास विष्णु उपासना के साथ शिव उपासना के लिए भी श्रेष्ठ है।
लेखिका जयपुर में धर्मशास्त्र और भाषाविज्ञान की प्रोफेसर हैं।
पौष शुक्ल पूर्णिमा से लेकर माघ पूर्णिमा तक माघ स्नान करने का शास्त्रीय विधान है, लेकिन ज्यादातर चंद्रमास के अनुसार ही माघ स्नान का विधान किया गया है -एकादश्यां शुक्लपक्षे पौषमासे समारभेत्।
माघमास में सूर्योदय के समय जल अत्यंत पवित्र होता है और उसमें तीनों प्रकार के पापों के विनाश की शक्ति होती है-माघमासे रटन्त्याप: किंचिदभ्युदिते रवौ।ब्रrाघ्नं वा सुरापं वा कं पतन्तं पुनीमहे॥
इस समय तीर्थजल में स्नान से ब्रrाघाती, शराबी और पतित भी पवित्र हो जाते हैं। जो व्यक्ति माघ मास में प्रात: समय सूर्य की किरणों से संतप्त नदी के प्रवाह में स्नान करता है, वह माता-पिता के वंश की सात-सात पीढ़ियों का उद्धार करके स्वयं देवरूप होकर स्वर्ग जाता है।
स्नान का सवरेत्तम समय अरुणोदय (सूर्योदय से एक घंटा छत्तीस मिनट पूर्व) माना गया है। इस समय स्नान करने वाला देवताओं में पूजित होता है। तारों की छांव में स्नान उत्तम, तारे छिपने पर स्नान मध्यम व सूर्योदय होने पर स्नान अधम कहा गया है।
गर्मजल से स्नान पर छह वर्ष के स्नान का फल मिलता है। बावड़ी में स्नान से बारह वषर्, तालाब में स्नान से २४ वषर्, नदी में इसका चौगुना, महानदी में सौ गुना, महानदी संगम में इससे चौगुना, गंगा में हजार गुना और गंगा-यमुना के संगम में स्नान से लाख गुना स्नान का फल प्राप्त होता है।
माघ स्नान को पुण्यदायी माना गया है। पुराण में लिखा है कि पौषशुक्ल एकादशी से लेकर माघ शुक्ल एकादशी तक, मास भर भूमि पर शयन करें, निराहार रहें और तीनों समय स्नान करें। भोग- विलास त्यागकर तीनों समय भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। माघ मास में स्नान से यज्ञ का फल प्राप्त होता है। इस मास में प्रयाग स्नान अति श्रेष्ठ माना गया है। इस स्नान से कई जन्मों के पापों का नाश हो जाता है।
यदि प्रयाग में स्नान संभव न हो तो किसी भी तीर्थ में प्रयाग का स्मरण कर स्नान करने से गंगा स्नान का फल प्राप्त होता है। जो पूरे मास स्नान करने में असमर्थ हो वह शुरू के तीन दिन या आखिर के तीन दिन या कोई भी तीन दिन स्नान कर सकता है। यह स्नान विष्णु भगवान को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है।
जो मनुष्य माघ में निरंतर भक्ति भाव से स्नान करता है, उसे पौण्डरीक यज्ञ का फल प्राप्त होता है। उसके किए पाप स्नान के जल में चले जाते हैं। विष्णु का पूजन कर व्रती तिल से स्नान, उबटन, होम, तर्पण, दान एवं तिल का भोजन करें। पितरों व देवताओं को मूली नहीं चढ़ानी चाहिए और न ही मूली खानी चाहिए। स्नान करने वाले को आग तापना भी निषेध किया गया है।
अग्नि में होम करना चाहिए तथा प्रतिदिन तिल व शक्कर दान करना चाहिए। यह मास तपस्वियों को प्रिय है। इसमें स्नान से महापातकी भी पाप मुक्त हो जाते हैं। माघ स्नान के विषय में कहा गया है कि जो मनुष्य मरने के उपरांत कष्ट नहीं चाहता, उसे यह स्नान करना चाहिए। माघ मास के दौरान जल में देवताओं का तेज विद्यमान रहता है, इसलिए माघ स्नान को बहुफलप्रदायक कहा गया है। यह मास विष्णु उपासना के साथ शिव उपासना के लिए भी श्रेष्ठ है।
लेखिका जयपुर में धर्मशास्त्र और भाषाविज्ञान की प्रोफेसर हैं।
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