Sunday, 18 January 2009

मान्यताओं पर बहस

गाहे बगाहे अक्सर ही परम्पराओं से हमारी मुठभेड़ होती ही रहती है. ऐसा नहीं की इसमें कुछ नया है. मेरे ख्याल से बदलते परिवेश ने हमेशा ही स्थापित मान्यताओं की अहमितयत को चुनौती दी है. अक्सर ही होता है की व्यक्तिगत मान्यताएं सामाजिक मान्यताओं से लड़ बैठती हैं. स्थिति और भी विकट हो सकती है जब दो सामाजिक मान्यताओं में ही मतभेद हो. सवाल उठता है कि क्या करें? तर्क -वितर्क अकसर निरर्थक ही सिद्ध होते हैं. मान्यताओं के समर्थको का कहना होता है कि मान्यताओं का विज्ञान केवल तर्क मात्र से थोड़े ही चलता है. उसके तो अलग ही नियम हैं. इस तर्क में दम तो है. तर्क करने वालों से उनकी ही मान्यताओं का आधार पूछें, तो जवाब शायद उनके पास भी न हो. लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं की हम तर्क ही छोड़ दें? तो यही रहा आज की चर्चा का विषय. मान्यताओं पर बहस कहाँ तक जायज़ है? कोशिश रहेगी ऐसी मान्यताओं को चर्चा का विषय बनाने की जहाँ टकराव दीखता है.

बस इतना ही नहीं, आने वाले कुछ दिनों में कोशिश करूंगा की हमारे समाज में व्याप्त मान्यताओं का निरपेक्ष संकलन कर सकूँ. मान्यताएं जो परम्पराओं से जुड़ी हैं, मान्यताएं जो त्योहारों से जुड़ी हैं, मान्यताएं जो दिन प्रतिदिन के व्यवहार से जुड़ी हैं, मान्यताएं जिनका आधार धार्मिक या पंथ विशेष से है और मान्यताएं जो पंथनिरपेक्ष हैं. सुझावों और सहयोग की अपेक्षा है.

1 comment:

  1. आध्यात्म विज्ञान की जननी है| सूर्य विज्ञान, चन्द्र विज्ञान, नछत्र विज्ञान, म्रदा विज्ञान, योग विज्ञान, आदि आदि आध्यात्म की शाखा है और ये ही आधुनिक विज्ञान का आधार स्तम्भ है| प्रकति मैं सब कुछ एक ही समय मैं एक साथ होता है, कही दिन है तो उसी समय कही रात है, कही सूखा है तो उसी समय कही अतिशय वर्षा, यह साम्य कभी कम या ज्यादा नहीं होता है| कोई तो है जो ये सब का रचिता है इसे चलता है और आनंद लेता है| आज भी रात होगी भले ही ओबामा का सूर्य उदय हो गया हो तो क्या| यह प्रकति की सत्ता है यहाँ तख्ता पलट नहीं होता| यहाँ एक ही योगेश्वर है|
    वास्तविक कर्म आत्मा का परमात्मा में मिलन ही है| और मार्ग में अनेक लघु प्रयास दैनिक कर्म के रूप मैं करने होते है| ध्यान लक्ष्य का ही होना चाहिए अन्यथा भटकाव निश्चित है| फिर ज्ञान से विमुख मन को कौन समझाए जो तीव्र कामनी कंचन और कीर्ति के अधीन हो चुका है| लक्ष्य जन्म के समय ही निर्धारित हो चुका है कि पुनः प्रशव पीड़ा से माँ को मुक्त करना है और यही मार्ग मात्र ही माँ के ऋण को पूरा कर सकता है| सत्य सरलता प्रेम ही हमें उस मार्ग पर चलने कि प्रेरणा दे सकती है| विषय संवाद का है विवाद का नहीं |


    ईश्वर आपकी सहायता करे !

    चरनाश्रित

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