Subscribe to:
Post Comments (Atom)
पत्थर में भगवान और पानी में गंगा. मान्यता ही तो है..तर्क वितर्क और चर्चाओं में तो सदियाँ बीत गयीं. एक चर्चा हम भी कर सकते हैं मान्यताओं के यथार्थ पर. जंगें छिड सकती हैं सार्थकता को लेकर.इतिहास भरा पड़ा हैं ऐसी जंगों से.. लेकिन, जंग अब भी ज़ारी है. मैं जंगी नहीं हूँ, लेकिन मान्यताएँ मेरी भी हैं. मान्यताएं जो विरोधी हैं, लेकिन कोशिश करूंगा कि जंग ना हो. बातचीत हो, शायद एक नयी मान्यता का जन्म हो..
सबसे पहले तो हिंदी में ब्लॉग की शुरुआत करने के लिए बधाई. दूसरी बधाई मान्यताओं की खोज बीन करने के लिए. मान्यताएं देश, काल और समाज की आवश्यकताओ के अनुसार तैयार होती है. जिन मान्यताओ का आप जिक्र कर रहे हैं उनके बारे में ये भी बताइए कि आज की समाज व्यवस्था में उनकी क्या उपयोगिता है. ईश्वर करे कि आपके द्वारा शुरू किया गया ये ब्लॉग कुछ दिनों में मान्यताओ के Encyclopaedia के रूप में हमारे सामने हो.
ReplyDelete